Shloka 3 Chapter 1 GITA FOR LAYMAN (Yatra Tatra Sarvatra)

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Ashok Yadav
3
Published on 01 Nov 2020 / In Educational

द्रोणाचार्य के पास जाकर दुर्योधन ने कहा :-

पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम् I
व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता II३II
“हे आचार्य ! पाण्डु के पुत्रों की बड़ी भारी सेना को तो देखिए I इसे आपके ही बुद्धिमान शिष्य और राजा द्रुपद के पुत्र धृष्टद्युम्न ने व्यूह में सजाया है I”

यहाँ ऐसा लग रहा है कि राजा दुर्योधन ने सामान्य बातचीत करने के अंदाज में यह बात कही है Iपरन्तु क्या यही सच है ?सच जानने के लिए थोड़ा पीछे चलते हैं I
पांचाल देश का राजा पृषत, भरद्वाज मुनि के मित्र थे। राजा के बेटे का नाम द्रुपद था। वह भरद्वाज के आश्रम में रहकर द्रोणाचार्य के साथ ही पढ़ता था। वे दोनों अच्छे दोस्त हो गए। एक दिन द्रुपद ने द्रोणाचार्य से कहा कि जब मैं राजा बनूंगा, तब तुम मेरे साथ रहना। मेरा राज्य, संपत्ति और सुख सब पर तुम्हारा भी मेरे बराबर ही हक़ होगा। राजा पृषत की मृत्यु हुई और द्रुपद पांचाल देश का राजा बन गया। दूसरी ओर द्रोणाचार्य अपने पिता के आश्रम में रहकर तपस्या करने लगे। उनका विवाह कृपाचार्य की बहन कृपी से हुआ। उनका अश्वत्थामा नाम का एक पुत्र हुआ। एक दिन दूसरे ऋषिपुत्रों को देख अश्वत्थामा भी दूध के लिए रोने लगा, लेकिन गाय न होने की वजह से द्रोणाचार्य उसे दूध नहीं दे सके और पानी में ही आटा घोलकर उसे पिलाया और चुप कराया।
द्रोणाचार्य को पता चला कि उनका मित्र द्रुपद राजा बन गया है, तो वे बचपन की मित्रता के नाते उससे मिलने गए। राजा द्रुपद ने उनका सम्मान नहीं किया और कहा कि एक राजा और एक गरीब कैसे मित्र ? द्रुपद की ये बात द्रोणाचार्य को अपमान जैसी लगी और वे आहत होकर अपने साले कृपाचार्य के घर हस्तिनापुर चले गए। एक दिन पाण्डव और कौरव राजकुमार गेंद खेल रहे थे। गेंद गहरे कुएं में गिर गई। राजकुमारों ने उस गेंद को निकालने की काफी कोशिश की, लेकिन वह नहीं निकली। द्रोणाचार्य यह देख रहे थे। उन्होंने बच्चों से कहा कि मैं गेंद निकाल देता हूं, तुम मुझे खाना खिला दो। द्रोणाचार्य ने धनुष पर तिनका चढ़ाया और कुएं से गेंद निकाल दी। सब को बड़ा अचम्भा हुआ। उन्होंने ये बात जाकर पितामह भीष्म से कही। भीष्म समझ गए कि वे द्रोणाचार्य हैं। भीष्म ने आदर से द्रोणाचार्य को हस्तिनापुर बुलाया और उन्हें कौरव व पांडव राजकुमारों का शिक्षक बना दिया।
जब राजकुमारों की शिक्षा पूरी हो गई तब द्रोणाचार्य ने कहा – “तुम पांचाल देश के राजा द्रुपद को बंदी बना कर मेरे पास ले आओ। यही मेरी गुरुदक्षिणा है।“ कौरव राजा द्रुपद को बंदी नहीं बना सके। बाद में पांडवों ने अर्जुन के पराक्रम से राजा द्रुपद को बंदी बना लिया और द्रोणाचार्य को गुरुदक्षिणा में दे दिया। द्रोणाचार्य ने द्रुपद का आधा राज्य ले लिया और उसे छोड़ दिया।
द्रुपद इस अपमान से पागल हो गया। उसने अपनी पत्नी के साथ द्रोणाचार्य के वध की कामना से एक यज्ञ किया। महाभारत के आदिपर्व के ६३वें उपपर्व में इसका जिक्र है :-

अश्वत्थामा ततो जज्ञे द्रोणदेव महाबलः ।
तथैव धृष्टद्युम्नॊऽपि साक्षादग्निसमद्युतिः।।१०८।।
वैताने कर्मणि तते पावकात् समजायत।
वीरॊ द्रोणविनाशाय धनुरादाय वीर्यवान् ।।१०९।।
तथैव वेद्यां कृष्णापि जज्ञे तेजस्विनी शुभा।
विभ्राजमाना वपुषा बिभ्रती रूपम् उत्तमम् ।।११०।।
इस श्लोक में कहा गया है कि तब द्रोणाचार्य से अश्वत्थामा का जन्म हुआ। उस यज्ञ की लौ से धनुष लिए हुए एक बलशाली युवक धृष्टद्युम्न का जन्म हुआ जो उस आग के सामान ही तेजस्वी था और द्रोणाचार्य के नाश के लिए वह हाथ में धनुष लिए हुए ही पैदा हुआ। उसी यज्ञ की लौ से एक परम रूपवती युवती उत्पन्न हुई जिसका नाम कृष्णा था और जो बाद में द्रौपदी के नाम से मशहूर हुई।

धृष्टद्युम्न ने बाद में द्रोणाचार्य से अस्त्र विद्या की शिक्षा भी प्राप्त की। यह भी माना जाता है कि एकलव्य रुक्मिणी हरण के युद्ध में श्री कृष्ण के हाथों मारा गया था और उसने धृष्टद्युम्न के रूप में पुनर्जन्म लिया था। इसी धृष्टद्युम्न ने महाभारत युद्ध के १४वें दिन, द्रोणाचार्य का सर तलवार से काट कर हत्या कर दी, जब वह अपने पुत्र अश्वत्थामा के मरने की झूठी खबर सुनकर दुखी थे और हथियार छोड़कर सर झुकाए बैठे थे। यह एक अलग कहानी है जिसे फिर कभी सुनेंगे।
इसलिए जब दुर्योधन ने द्रोणाचार्य से कहा कि इस सेना को द्रुपद के पुत्र धृष्टद्युम्न ने सजाया है तो वह द्रोणाचार्य को उकसा कर गुस्सा दिलाना चाहता था कि यह वही द्रुपद का पुत्र है जिसे उनको मारने के लिए ही पैदा किया गया है। दुर्योधन चाहता था कि द्रुपद से हुए अपमान और दुश्मनी को याद करके द्रोणाचार्य पूरी शक्ति से और पूरे गुस्से से लड़ें।
अब अपनी कहानी यहीं रोकते हैं I राजा दुर्योधन ने आचार्य द्रोण से और क्या कहा ? इस प्रकरण को सुनेंगे अगले अंक में।
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CONCEPT & RESEARCH ASHOK KUMAR YADAV
SCRIPT & TECHNICAL SUPPORT ASHOK KUMAR YADAV
VOICE OVER - SANSKRIT SHLOKA NISHTHA YADAV
VOICE OVER - HINDI VERSION SARASWATI DEVI

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