Shloka 14 to 19 Chapter 1, Gita for Layman (Yatra Tatra Sarvatra)

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Ashok Yadav
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Published on 21 Nov 2020 / In Educational

श्रीकृष्ण और अर्जुन ,सफ़ेद घोड़ों से जुते हुए विशाल दैवी रथ में बैठे हुए हैं । रथ के ऊपर कपिध्वज लहरा रहा है । इस रथ की भी एक कहानी है । एक बार श्रीकृष्ण और अर्जुन खाण्ड वप्रस्थ के वन में घूम रहे थे । वहां उनको एक बेहद दुबला पतला बीमार सा आदमी दिखा, जिसका चेहरा पीला पड़ गया था । वह अग्नि देव थे। अग्नि ने बताया कि उनके जथर में बीमारी हो गयी हैम जिसके इलाज के लिए मुझे इस वन को जलाना होगा । लेकिन वह ऐसा नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि इन्द्रदेव यहाँ रहने वाले तक्षक नाग के मित्र हैं और वह पानी बरसाकर हर बार मुझे रोक देते हैं । मेरी सहायता करिये । श्रीकृष्ण और अर्जुन ने तब वरुण देव की सहायता से इंद्र को हराया और अग्नि देव की भूख मिटाई । वरुणदेव ने खुश होकर अर्जुन को कपिध्वज रथ और गांडीव धनुष दिया ।
यदुकुल में एक महान राजा हुए थे, मधु । मधु के पौत्र का नाम वृष्णि था । वृष्णि भी एक महान राजा थे, जिनके नाम से यदुकुल की वृष्णि शाखा बनी । राजा वृष्णि से पांचवी पीढ़ी के बाद इस कुल में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ । इसीसे श्रीकृष्ण को माधव कहा जाता है । हृषीक शब्द का अर्थ है - इन्द्रिय। हृषीकेश का मतलब होता है, इन्द्रियों का स्वामी । जिसका इन्द्रियों पर नियंत्रण हो । इसी गुण के कारण, श्रीकृष्ण को हृषीकेश कहा गया ।
श्रीकृष्ण ने युद्ध के आरम्भ में, पाञ्चजन्य नाम का शंख बजाया । श्रीकृष्ण और उनके बड़े भाई बलराम, संदीपनि ऋषि के गुरुकुल में पढ़ते थे । जब उनकी शिक्षा पूरी हुई, तो उन्होंने अपने गुरु से, गुरु दक्षिणा लेने का आग्रह किया । संदीपनि ऋषि को पता था कि, ये बालक, अवतारी पुरुष हैं । अतः उन्होंने दक्षिणा में, समुद्र में डूबकर मरे, अपने पुत्र को मांग लिया । श्रीकृष्ण और बलराम समुद्र में गए और वहां उन्होंने पंचजन नाम के एक समुद्री दैत्य को देखा, जो शंख के खोल में रहता था । इस दानव के नाम से शंख का नाम पान्चजन्य था । उसीने उनके गुरु के पुत्र को मारा था । दोनों भाइयों ने इस दानव को मार गिराया और शंख को ले लिया । लेकिन उन्हें वहां, गुरुपुत्र नहीं मिला । तब, श्रीकृष्ण और बलराम यमराज की नगरी में गए और वहां इस दैवी शंख को बजाया । यमराज, इस दैवी शंख की ध्वनि सुनकर आए और गुरुपुत्र को वापस इन भाइयों को सौंप दिया । गुरु के पास जाकर, बलराम और श्रीकृष्ण ने गुरुपुत्र को, गुरु संदीपनि को दे दिया। गुरु संदीपनि ने तब श्रीकृष्ण से कहा, कि यह पान्चजन्य शंख उनके लिए ही बना है । इसलिए वे इस दैवी शंख को अपने पास ही रखें । इस तरह श्रीकृष्ण को पान्चजन्य शंख मिला । श्रीकृष्ण ने यही पान्चजन्य शंख, महाभारत के युद्ध से पहले बजाया ।
अर्जुन को यहाँ पर “धनञ्जय” कहा गया है । इस नाम का अर्थ, खुद अर्जुन ने, राजा विराट के पुत्र उत्तर कुमार को, तब बताया था, जब वे राजा विराट के महल में थे ।
एक बार अर्जुन अपने पिता इंद्र के पास इन्द्रपुरी में, घूमने के लिए गए । वहां अप्सरा उर्वशी, अर्जुन पर मोहित हो गई , किन्तु उसकी इच्छा के अनुसार प्रेमालाप न करने के कारण, उसने, अर्जुन को एक वर्ष तक नपुंसक रहने का शाप दिया। जब पांडव, जुए में हारे, तो उनको १२ वर्ष के वनवास के साथ, एक वर्ष का अज्ञातवास भी काटना था, जो उन्होंने विराट नगर में बिताया। विराट नगर में, पांडव अपना नाम और पहचान, पूरी तरह छुपाकर रहे। उन्होंने राजा विराट के यहाँ, सेवक बनकर एक साल बिताया।
इधर, दुर्योधन को खबर हो गयी कि, पांडव विराट नगर में हैं । तो उसने विराट नगर में सेना भेजकर चढ़ाई कर दी । राजा विराट घबरा गया। तब वृहन्नला ने राजकुमार उत्तर को रथ में बैठाया और उसे बताया कि मैं ही महारथी अर्जुन हूँ । उत्तर कुमार के संदेह करने पर अर्जुन ने अपने १० नाम बताए, तब उसे, वृहन्नला के अर्जुन होने का विश्वास हुआ और वह अर्जुन के साथ युद्ध में जाने के लिए तैयार हुआ । यहीं पर अर्जुन ने बताया कि, मुझे धनञ्जय इसलिए कहते हैं, क्योंकि मैंने अनेक राज्यों को हराकर, उनकी धन- संपत्ति जीत ली है ।
वनवास के दौरान ही अर्जुन ने इन्द्र और वरुण आदि देवताओं की आराधना की ।तब वरुण देव नेअर्जुन को , देवदत्त नाम का, दैवी शंख दिया । देवदत्त अर्थात देवता द्वारा दिया गया उपहार । इसी देवदत्त शंख को अर्जुन ने महाभारत के युद्ध से पहले बजाया ।
भीम ने जो शंख बजाया, उसका नाम पौण्ड्र था । इसी प्रकार राजा युधिष्ठिर ने अनन्तविजय, और पांडवों के सबसे छोटे भाइयों, नकुल और सहदेव ने, सुघोष और मणिपुष्पक नाम के शंख बजाए । पांडवों के अन्य योद्धाओं, जैसे कशिराज, शिखंडी, धृष्ट द्युम्न, विराट, सात्यकि, द्रुपद, प्रतिविन्ध्य, सुतसोम, श्रुतकर्मा, शतानीक, श्रुतसेन और अभिमन्यु ने भी अपने अपने शंख बजाए । इस सामूहिक शंखनाद से एक घनघोर नाद और शत्रुओं के दिलों को दहला देने वाला भयंकर शोर उत्पन्न हुआ । जो जमीन से असमान तक गूँज गया ।
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